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Bagh-e-Bahisht Se Mujhe Hukam-e-Safar Diya Tha Kyun Kaar-e-Jahan Daraz Hai, Ab Mera Intezar Kar                      - Mohammad...

Thursday, December 23, 2021

तुम

दिसंबर की सफेद सुबह का एक ठंडा जमा हुआ पहर,

बरसता हुआ पाले-सा, रास्ते भर।


और उसपर,

अथाह रातों की परतों के पीछे दबा

अपनी ही गहराइयों से भिंचा

नन्हा सा,

किंतु अविराम

एक बोसा तुम।


Ps- 

बोसा (फ़ारसी) - चुम्बन, kiss

Sunday, July 25, 2021

These verses I write


 तुम पूछते हो

कविता कैसे लिख लेती हो?


कविता

एक चीख है

गले में अटके अल्फ़ाज़ों की चीख

अपना घर ढूंढते, खोये हुए बच्चे-से अल्फ़ाज़

जिसका सबसे प्यारा खिलौना,

तोड़ दिया हो किसी ने हँसकर।


कविता 

एक रक़्स है

कभी सूफ़ी-सा ज़िक्र

कभी खयालों में सैक्सोफोन पर किया

तुम्हारे साथ एक वॉल्ट्ज

मेरे तुम्हारे ख़ालिस खयालों का रक़्स

कागज़ पर।


कविता बग़ावत है

अकेलेपन से 

बात न करने की 

ज़िद ही से।


कविता इश्क़ है

जीने के फ़ैसले से,

ज़िन्दगी से।


कभी छूकर नहीं देखा तुमने

मेरे रेज़े रेज़े में थिरकती हुई

ज़िन्दगी से प्रेम करने की

आदत को।


वरना जान पाते

कैसे लिखती हूँ मैं


ख़ामोशी को ओढ़े

अपने हर दर्द को जोड़े


टीस को ढोये

प्रेम को संजोए


दायरों को तोड़ती हुई

तुम्हें मुझसे जोड़ती हुई


कविता।

Thursday, June 17, 2021

Who I am.


 कभी छू कर देखा नहीं तुमने उसका रेज़ा रेज़ा
वो समंदर
जो पहाड़ बन गया।

You could never touch 
what it was made up of really
- the tethys -
which became
- the himalaya -

#morninginspiration #myverses 

Thursday, May 27, 2021

Muffler.

 


तू इन सड़कों पे फिरता-सा, किन्ही रातों का कोहरा है
कुछ धुंधला है, कुछ कोरा है।

अभी मेरे कानों की बाली में,
तेरे हाथों की गरमाहट
बरस रही है 
फ़ैज़ के मिसरे- सी
किन-मिन किन-मिन।

अभी उलझे हुए मेरे बालों में,
तेरी गालों का इक गड्ढा
की जैसे रक़्स करता है।

अभी तेरे लम्स की आहट की गरमाहट से
ये ठंडा चाँद सिहरता है
चौदह दिन पुराना चाँद।

और
गहरे समंदरों की कोलाहल से निकले
तनहा एक जज़ीरे-सी
तेरी आवाज़ 

कभी जो मेरे लिए
कोई नज़्म पढ़ा यूँ करती है
ऐसी ठंडी सीली रातों में,

तो आफिस की देरी के कारण 
मेरी ठंडी हुई रात की कॉफ़ी
फिर से गर्म हो जाती है।

ग़ालिब के मक़ते-से 
तेरे लब
अभी भी
मेरे मफ़लर पे बैठें हैं।

मुस्कुरा रहें हैं
किन-मिन किन-मिन।


Thursday, April 1, 2021

The passing moment is all you have.

 

दोपहरी की आंधी के बाद जब शाम को सूर्य की किरण,
जा गिरती है
- खंडहर के ईंट के हृदय पर -
तो एहसास होता है कि,
कुछ भी नहीं रहता
- हमेशा के लिए -
न ईंटें।
न खंडहर।
और न ही आंधी।
 
Ps - Thankyou @ichakdanastore for this beautiful floral bomber jacket.

#myverses #mypoems #theabode #ruins #ephemeral #hameshakeliye #mountains #pines

Thursday, March 11, 2021

The truth half unseen.


तू आधा-सा क्यों है? तू आधे से थोड़ा ज़ियादा-सा क्यों है?

मैं लम्हे के मानिंद मुख़्तसर हूँ, अयाँ हूँ

गरचे-सा कभी तू लिहाज़ा-सा क्यों है?

( मानिंद - like, जैसा, की तरह;  मुख़्तसर - short, छोटा सा ; अयाँ - evident, स्पष्ट ; गरचे - if, even though, मगर, लेकिन;  लिहाज़ा - therefore, thats why, इसलिए)


तू शहरों की सड़कों पे शामों-शबों में

पिघलता हुआ कोई वादा-सा क्यों है?

(शब - night, रात)


हर्फ़ों से फ़र्दों पे सरहद बनाकर

बता तेरा दिल ये कुशादा-सा क्यों है?

(फ़र्दों - stamp papers ; कुशादा - open, uncovered, खुला)


इल्तिज़ा-ब-लब मैं बरसता आसमाँ सा

तू ख़ामोश-सा इक तकाज़ा-सा क्यों है?

(इल्तिज़ा-ब-लब - request on lips ; तक़ाज़ा - pressing demand)


नहीं अब यहाँ हूँ, कि मैं जा चुका हूँ

तू आकाश पर ईस्तादा- सा क्यों है?

(ईस्तादा - standing, खड़ा हुआ) 


तू क्यों धमनियों में धधकने लगा है?

छुअन-सा, लहु-सा, तू बादा-सा क्यों है?

(बादा - wine)


मैं उठकर गिरा हूँ, मैं गिरकर उठा हूँ

मेरी वुसअतों का इरादा-सा क्यों है?

(वुसअतों - expanse, फैलाव)


मेरी कैफ़ियत के तर्जुमें बहुत हैं

पर सभी में बसा हर्फ़-ए-सादा सा तू है।

(कैफ़ियत - narrative ; तर्जुमें - interpretations, translations, अनुवाद; हर्फ़-ए-सादा - simple word)

तू आधा-सा क्यों है? तू आधे से थोड़ा ज़ियादा-सा क्यों है?

Tuesday, March 2, 2021

Story of a touch.


Isn't it a wonder how colours can fill us... 

There are times when we are the canvas. 

Sometimes we become the brush. 

And one day we are 

the painter.


Thank you @rang_by_shilpa

https://instagram.com/rang_by_shilpa?igshid=l39v1vz0d705

for this beautiful hand painted crepe saree. It's so full of spring and sunshine. Such positive colours!

#introspections  #sunsoaking  #myverses #paintings  #handpainted  #vocalforlocal  #sareesofinstagram

Saturday, February 27, 2021

The filament sings a story.


 Some nights will be cold and dark, and you will have to light up all the corners of your room to bring yourself light. 

Do that. 

Small efforts matter. 

And remember it's important to have known your darkness, to be able to reach your light. .


Of Alphabet and song.


 All I need is a piece of paper in spring

and a little graphite or some charcoal. 

There are these sonnets dancing on my fingers.

and ballads bubble from my Kohl.

Sunday, February 21, 2021

Attempts at poetry recital

 

This is one of my favorite poems by Harivansh Rai Bachchan Sahab.
https://youtu.be/rQw2E0x6c_4

अंग से मेरे लगा तू अंग ऐसे, आज तू ही बोल मेरे भी गले से।

पाप हो या पुण्‍य हो, मैंने किया है
आज तक कुछ भी नहींआधे हृदय से,
औ' न आधी हार से मानी पराजय
औ' न की तसकीन ही आधी विजय से;
आज मैं संपूर्ण अपने को उठाकर
अवतरित ध्‍वनि-शब्‍द में करने चला हूँ,
अंग से मेरे लगा तू अंग ऐसे, आज तू ही बोल मेरे भी गले से।

और है क्‍या खास मुझमें जो कि अपने
आपको साकार करना चाहता हूँ,
ख़ास यह है, सब तरह की ख़ासियत से
आज मैं इन्‍कार करना चाहता हूँ;
हूँ न सोना, हूँ न चाँदी, हूँ न मूँगा,
हूँ न माणिक, हूँ न मोती, हूँ न हीरा,
किंतु मैं आह्वान करने जा रहा हूँ देवता का एक मिट्टी के डले से।
अंग से मेरे लगा तू अंग ऐसे, आज तू ही बोल मेरे भी गले से।

और मेरे देवता भी वे नहीं हैं
जो कि ऊँचे स्‍वर्ग में हैं वास करते,
और जो अपने महत्‍ता छोड़,
सत्‍ता में किसी का भी नहीं विश्‍वास करते;
देवता मेरे वही हैं जो कि जीवन
में पड़े संघर्ष करते, गीत गाते,
मुसकराते और जो छाती बढ़ाते एक होने के लिए हर दिलजले से।
अंग से मेरे लगा तू अंग ऐसे, आज तू ही बोल मेरे भी गले से।

छप चुके मेरी किताबें पूरबी औ'
पच्छिमी-दोनों तरह के अक्षरों में,
औ' सुने भी जा चुके हैं भाव मेरे
देश औ' परदेश-दोनों के स्‍वरों में,
पर खुशी से नाचने का पाँव मेरे
उस समय तक हैं नहीं तैयार जबतक,
गीत अपना मैं नहीं सुनता किसी गंगोजमन के तीर फिरते बावलों से।

अंग से मेरे लगा तू अंग ऐसे, आज तू ही बोल मेरे भी गले से।
- Harivansh Rai Bachchan Sahab

Monday, February 8, 2021

I got you.


Long back in my life I used to think that strength is about fighting, about holding the storm inside you, about not letting anyone know . 

It's been a long journey and there are days I realise, strength is also about opening up, about accepting that you are scared, about surrendering to pain, looking it in its eye and telling it- "I got you". I got you.

Strength is what you make of yourself. And sometimes it is  just letting yourself be.

  

Friday, January 15, 2021

The language of languages.


क्योंकि 

एक सांझ तुमने

इंग्लिश की चार लाइनों वाली कॉपी पर

उर्दू का एक नुक़्ता बना दिया ।

भाषाएँ मुस्कुराती रहीं,

रात भर।

Tuesday, January 5, 2021

फ़र्द


 सब बदल- सा गया

काग़ज़ की एक फ़र्द से; 

तू बड़ा है मगर

हाँ, तेरे दर्द से।

Sunday, January 3, 2021

The page on fire.

 

एक आवाज़ को
कागज़ पर उतारना चाहता हूँ।
रोज़ ही हर्फ़ आंखों में अटक जातें हैं।
पलकों के आस्तां पे,
फ़ितनें किया करतें हैं
और हाथों से जो छू दूँ तो,
लरज़ जातें हैं।

एक आवाज़ को
कागज़ पर उतारना चाहता हूँ।
रक्स करती है वो,उंगलियों पर,शुआओं से अपनी
हाथों की इक़ामत में,
दबे पांव सिमट जाती है
और लकीरों में ऐसे मिला करती है
जैसे हथेली पर धूप बिखर आती है।

मैंने हथेली से
कागज़ पर
- सूरज - 
बना दिया है

हर्फ़ - शब्द, word
आस्तां - दहलीज़, चौखट
फ़ितनें - शरारतें, उथल पुथल
लरज़- काँपना, shiver
रक्स - dance
शुआओं - किरणों, rays
लकीरों - lines
इक़ामत - abode, घर