तू इन सड़कों पे फिरता-सा, किन्ही रातों का कोहरा है
कुछ धुंधला है, कुछ कोरा है।
कुछ धुंधला है, कुछ कोरा है।
अभी मेरे कानों की बाली में,
तेरे हाथों की गरमाहट
बरस रही है
फ़ैज़ के मिसरे- सी
किन-मिन किन-मिन।
अभी उलझे हुए मेरे बालों में,
तेरी गालों का इक गड्ढा
की जैसे रक़्स करता है।
अभी तेरे लम्स की आहट की गरमाहट से
ये ठंडा चाँद सिहरता है
चौदह दिन पुराना चाँद।
और
गहरे समंदरों की कोलाहल से निकले
तनहा एक जज़ीरे-सी
तेरी आवाज़
कभी जो मेरे लिए
कोई नज़्म पढ़ा यूँ करती है
ऐसी ठंडी सीली रातों में,
तो आफिस की देरी के कारण
मेरी ठंडी हुई रात की कॉफ़ी
फिर से गर्म हो जाती है।
ग़ालिब के मक़ते-से
तेरे लब
अभी भी
मेरे मफ़लर पे बैठें हैं।
मुस्कुरा रहें हैं
किन-मिन किन-मिन।
कोई दिवाना कहता हैं, कोई पागल समझाता हैं,
ReplyDeleteमगर धरती की बैचेनी को, बस बादल समझता हैं,
मैं तुझसे दूर कैसा हु, तू मुझसे दूर कैसी हैं,
ये तेरा दिल समझता हैं, या मेरा दिल समझता है।
मुहब्बत एक एहसासों की, पावन सी कहानी है,
कभी कबीरा दिवाना था, कभी मीरा दिवानी हैं,
यहाँ सब लोग कहतें हैं, मेरी आँखों में आंसू हैं,
जो तू समझें तो मोती हैं, ना समझें तो पानी हैं।
समंदर पीर का अंदर हैं, लेकिन रो नहीं सकता,
ये आंसू प्यार का मोती हैं, इसको खो नहीं सकता,
मेरी चाहत को अपना तू बना लेना, मगर सुन ले,
जो मेरा हो नहीं पाया, वो तेरा हो नहीं सकता।
की ब्रह्मर कोई कुमुदनी पर, मचल बैठा तो हंगामा,
हमारे दिल में कोई ख़्वाब पर बैठा तो हंगामा,
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्से मौहब्बत के,
मैं किस्से को हक़ीकत मैं बादल बैठा तो हंगामा।