एक आवाज़ को
कागज़ पर उतारना चाहता हूँ।
रोज़ ही हर्फ़ आंखों में अटक जातें हैं।
पलकों के आस्तां पे,
फ़ितनें किया करतें हैं
और हाथों से जो छू दूँ तो,
लरज़ जातें हैं।
एक आवाज़ को
कागज़ पर उतारना चाहता हूँ।
रक्स करती है वो,उंगलियों पर,शुआओं से अपनी
हाथों की इक़ामत में,
दबे पांव सिमट जाती है
और लकीरों में ऐसे मिला करती है
जैसे हथेली पर धूप बिखर आती है।
मैंने हथेली से
कागज़ पर
- सूरज -
बना दिया है।
हर्फ़ - शब्द, word
आस्तां - दहलीज़, चौखट
फ़ितनें - शरारतें, उथल पुथल
लरज़- काँपना, shiver
रक्स - dance
शुआओं - किरणों, rays
लकीरों - lines
इक़ामत - abode, घर
हर मुसाफ़िर है सहारे तेरे
ReplyDeleteकश्तियां तेरी, किनारे तेरे
तेरे दामन को ख़बर दे कोई,
टूटते रहते हैं तारे तेरे
धूप दरिया में रवानी थी बहुत
बह थक गए चांद सितारे तेरे
तेरे दरवाज़े को जुम्बिश न हुई
मैंने सब नाम पुकारे तेरे
बे तलब आँखों में क्या-क्या कुछ है
वो समझता है इशारे तेरे
कब पसीजेंगे ये बहरे बादल
हैं शज़र हाथ पसारे तेरे
मेरा इक पल भी मुझे मिल न सका
मैंने दिन-रात गुज़ारे तेरे
तेरी आँखें तेरी बीनाई है
तेरे मंज़र हैं नज़ारे तेरे
यह मेरी प्यास बता सकती है
क्यों समंदर हुए खारे तेरे
जो भी मनसूब तेरे नाम से थे
मैंने सब क़र्ज़ उतारे तेरे
तूने लिखा मेरे चेहरे पे धुंआ
मैंने आईने संवारे तेरे
और मेरा दिल वही मुफ़लिस का चिराग़
चाँद तेरा है सितारे तेरे
Supb
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