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Bagh-e-Bahisht Se Mujhe Hukam-e-Safar Diya Tha Kyun Kaar-e-Jahan Daraz Hai, Ab Mera Intezar Kar                      - Mohammad...

Tuesday, January 5, 2021

फ़र्द


 सब बदल- सा गया

काग़ज़ की एक फ़र्द से; 

तू बड़ा है मगर

हाँ, तेरे दर्द से।

7 comments:

  1. मैं तुम्हें ढूँढने स्वर्ग के द्वार तक
    रोज आता रहा, रोज जाता रहा
    तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई
    मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा

    जिन्दगी के सभी रास्ते एक थे
    सबकी मंजिल तुम्हारे चयन तक गई
    अप्रकाशित रहे पीर के उपनिषद्
    मन की गोपन कथाएँ नयन तक रहीं
    प्राण के पृष्ठ पर गीत की अल्पना
    तुम मिटाती रही मैं बनाता रहा
    तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई
    मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा

    एक खामोश हलचल बनी जिन्दगी
    गहरा ठहरा जल बनी जिन्दगी
    तुम बिना जैसे महलों में बीता हुआ
    उर्मिला का कोई पल बनी जिन्दगी
    दृष्टि आकाश में आस का एक दिया
    तुम बुझती रही, मैं जलाता रहा
    तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई
    मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा

    तुम चली गई तो मन अकेला हुआ
    सारी यादों का पुरजोर मेला हुआ
    कब भी लौटी नई खुशबुओं में सजी
    मन भी बेला हुआ तन भी बेला हुआ
    खुद के आघात पर व्यर्थ की बात पर
    रूठती तुम रही मैं मानता रहा
    तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई
    मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा
    मैं तुम्हें ढूँढने स्वर्ग के द्वार तक
    रोज आता रहा, रोज जाता रहा........

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  4. Jab kahi bhi aahat huyi
    Yu laga ke too aa gaya
    Khushbu ke jhonke ki
    Tarah meri sanse mahka gaya
    Ek woh daur tha ham sada pas the
    Ek woh daur tha ham sada pas the
    Abb toh hain fasle darmiya
    Mai yaha too waha zindagi hai kaha

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  5. Nice Post, You really give informative information. Thanks for sharing this great article.

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