शहरों से शहरों के बीच, तू मिल जाता है मुझको
हर एक रास्ते पर
हरा या पीला या सतरंगा कोई पेड़ बनके
मैं गाड़ी की खिड़की से तकतीं हूँ ,
तेरी शाखों पर बंधे धागे
- धागों से वादे -
- वादों से नग़में -
- और नग़मों से गुनगुनाती -
मिट्टी की ख़ुशबू
बारिश की थिरकन
पत्तों की कंपन
और आसमां का मुझपर आसरा।
फिर भी इन शहरों में लोग अक्सर मुझसे पूछा करतें हैं,
" तू है कहाँ ?"
Kabhi kabhi apni hee shaksiyat ko nahi dhondh patey hain hum,par jo dhagey peson par banshwyvhai shayd uso tarah hum bhi khud se bandhey hain...
ReplyDeleteBeautiful !!
ReplyDeleteye kya kiya mai betab ho gaya,
ReplyDeletedariya-e-dil ki kitab me khuch likhne ka jazbat sa ho gaya,
shayar na tha na he hona chahunga kisi k ishq me,
dekh k kalam-e-noor aapka...gazal mureed "vs" nawab ho gaya!
Wo h yahin...
ReplyDeleteSuperb😊
ReplyDeleteSuperb😊
ReplyDeleteThank you.
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