Wrote this sum tym back...
Jus wanna blog it 2day....
तू ही तो है ; बस एक तू, मेरे हर कण में तेरा नाम है।
मेरी रूह में बस्ता है तू; कृष्णा है तू; तू राम है।
मंदिर में तू, मस्जिद में तू; गिरिजा है, तू गुरुद्वार है।
जन- जन को मन से जोड़ दे; तू वह आलोकिक प्यार है.
कबीरा कि उज्जवल वाणी तू, मीरा का निश्छल प्रेम है।
सिन्धु भी उसे न डूबा सके; जिस पत्थर पे तेरा नाम है।
नभ में, नदी में, बाग़ में; मैंने ढूंडा तुझे हर वन में है।
पर इक क्षण जो खुद में लीं हो; पाया तू मेरे मन में है।
आधार दे इस सृष्टी को जो, मेरी छुपी वह शक्ति है.
जो ज्वार बन टकराए तट से; तू मेरी वेह अभिव्यक्ति है।
पवन से करता है शीतल, मिटटी के मेरे शरीर को।
तू ताप देता है मुझे; कि पिघला सके मेरी पीर को।
तू ॐ है, तू व्योम है; तत्सत कि तू इकाई है।
ब्रहमांड़ का विस्तार है तू; तू प्रेम है, तू साईं है।
तेरी हर रज़ा स्वीकार है; तेरा फैसला स्वीकार है।
तुने लिख दिया स्वीकार है; बिन प्रश्न अब स्वीकार है।
तू चाहे अब मुझे थाम ले; चाहे अधुरा छोड़ दे।
बिखरे सिरे मेरे बाँध दे; चाहे तो तू मुझे तोड़ दे।
मिटटी हूँ मैं, मै धुल हूँ; विस्तृत तू आकाश है।
कहतें हैं मुझसे दूर है; मुझमे है तू, मेरे पास है।
मिटटी के मेरे शरीर में, मेरे दर्द में, मेरी पीड़ में।
मेरी आत्मा, मेरी ज्योत में; अस्तित्व के मेरे स्त्रोत में।
मेरी हर उखड्ती सांस में; मेरे टूटते विश्वास में...
तू ही तो है, बस एक तू; मेरे हर कण में तेरा नाम है;
मेरी रूह में बस्ता है तू; कृष्णा है तू, तू राम है...
Jus wanna blog it 2day....
तू ही तो है ; बस एक तू, मेरे हर कण में तेरा नाम है।
मेरी रूह में बस्ता है तू; कृष्णा है तू; तू राम है।
मंदिर में तू, मस्जिद में तू; गिरिजा है, तू गुरुद्वार है।
जन- जन को मन से जोड़ दे; तू वह आलोकिक प्यार है.
कबीरा कि उज्जवल वाणी तू, मीरा का निश्छल प्रेम है।
सिन्धु भी उसे न डूबा सके; जिस पत्थर पे तेरा नाम है।
नभ में, नदी में, बाग़ में; मैंने ढूंडा तुझे हर वन में है।
पर इक क्षण जो खुद में लीं हो; पाया तू मेरे मन में है।
आधार दे इस सृष्टी को जो, मेरी छुपी वह शक्ति है.
जो ज्वार बन टकराए तट से; तू मेरी वेह अभिव्यक्ति है।
पवन से करता है शीतल, मिटटी के मेरे शरीर को।
तू ताप देता है मुझे; कि पिघला सके मेरी पीर को।
तू ॐ है, तू व्योम है; तत्सत कि तू इकाई है।
ब्रहमांड़ का विस्तार है तू; तू प्रेम है, तू साईं है।
तेरी हर रज़ा स्वीकार है; तेरा फैसला स्वीकार है।
तुने लिख दिया स्वीकार है; बिन प्रश्न अब स्वीकार है।
तू चाहे अब मुझे थाम ले; चाहे अधुरा छोड़ दे।
बिखरे सिरे मेरे बाँध दे; चाहे तो तू मुझे तोड़ दे।
मिटटी हूँ मैं, मै धुल हूँ; विस्तृत तू आकाश है।
कहतें हैं मुझसे दूर है; मुझमे है तू, मेरे पास है।
मिटटी के मेरे शरीर में, मेरे दर्द में, मेरी पीड़ में।
मेरी आत्मा, मेरी ज्योत में; अस्तित्व के मेरे स्त्रोत में।
मेरी हर उखड्ती सांस में; मेरे टूटते विश्वास में...
तू ही तो है, बस एक तू; मेरे हर कण में तेरा नाम है;
मेरी रूह में बस्ता है तू; कृष्णा है तू, तू राम है...
Another extraordinary masterpiece in expression of love to GOD. Words cannot appreciate any more.
ReplyDeletetrue devotion reflected in ur words.....:)
ReplyDeleten i love ur blog name & its description :)
beautiful... I wish I could have been able to write such beautiful poems in hindi.
ReplyDeleteBAHUT HEE SAMVENDNA SE PARIPURNA, PRAKASHATH KAVITA:)
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