सच क्या है ,और क्या दर्पण-सा?
है भी जो, है भी नहीं, भ्रम सा
सागर सा नीला तो लगता है,
पानी है या रेत सुलगता है?
वो जो है भी नहीं
है कहीं न कहीं
बहता रहा है ...
है कहीं न कहीं
बहता रहा है ...
इन धमनियों में,
जो जुनून-सा,
बनके मेरे सफर में...
तू कौन है जो समंदर-सा?
छाया है मुझपे, तू अम्बर-सा
सूरज-सा बातें तो करता है
हाँ डूबने से भी डरता है..
तू अकेला नहीं,
मुझमें तू कहीं,
रहता रहा है...
इन हौंसलों में
तू सुकून-सा,
बनके मेरे सफर में।
It is really nice to see "Hindi" script after a long long time. I just realized that Hindi is a beautiful language and I should not allow myself to forget it.
ReplyDeleteBeautiful poem indeed. Thanks for sharing.
Thank you. :) keep talking.
DeleteSuch softness in these lines. Beautiful my dear.
ReplyDeletesoftness... i wonder. Thank you. keep talking:)
DeleteBeautiful lines :)
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