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Tuesday, December 29, 2020

The unsaid.

"कैसे में कागज़ पर लिख दूं ? 

रस्म-उल-ख़त में कोई हर्फ नहीं

आंखों में रोक के बैठी हूं, 

मुझमें है बचा कोई ज़र्फ़ नहीं। " 


रस्म-उल-ख़त - script

हर्फ - word

ज़र्फ़ - vessel, container
 

1 comment:

  1. मैं रूठा ,
    तुम भी रूठ गए
    फिर मनाएगा कौन ?

    आज दरार है ,
    कल खाई होगी
    फिर भरेगा कौन ?

    मैं चुप ,
    तुम भी चुप
    इस चुप्पी को फिर तोडे़गा कौन ?

    बात छोटी को लगा लोगे दिल से ,
    तो रिश्ता फिर निभाएगा कौन ?

    दुखी मैं भी और तुम भी बिछड़कर ,
    सोचो हाथ फिर बढ़ाएगा कौन ?

    न मैं राजी ,
    न तुम राजी ,
    फिर माफ़ करने का बड़प्पन
    दिखाएगा कौन ?

    डूब जाएगा यादों में दिल कभी ,
    तो फिर धैर्य बंधायेगा कौन ?

    एक अहम् मेरे ,
    एक तेरे भीतर भी ,
    इस अहम् को फिर हराएगा कौन ?

    ज़िंदगी किसको मिली है सदा के लिए ?
    फिर इन लम्हों में अकेला
    रह जाएगा कौन ?

    मूंद ली दोनों में से गर किसी दिन
    एक ने आँखें….
    तो कल इस बात पर फिर
    पछतायेगा कौन ?

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