एक जलती हुई तस्वीर जो इन आंखों में है, उसको मैं रोज़ ही धागों से लिखा करता हूं।
ख्वाब संजो के कुछ हाथों में पहन रखें हैं, रेज़ा रेज़ा उसे तारों में बुना करता हूं।
और एक बर्फ-सी की नज़्म इन आंखों में लिए
कभी कैनवस कभी कागज़ पे फिरा करता हूं..
- तुमने अल्फ़ाज़ पढ़ें है कभी -
उंगलियों पर अटके ?
एक तस्वीर आँखों में आती हुई एक जाती हुई
ReplyDeleteफिर वही शाम है फिर वही याद है दिल दुखाती हुई
शब के दरिया में उठती है इक मौज-ए-माज़ी बला-ख़ेज़ क्यूँ
लौट जाती है क्यूँ साहिल-हाल से सब मिटाती हुई
और क्या होने वाला है अब जो अभी तक नहीं हो सका
सुन रहा हूँ कहीं दूर से फिर सदा कुन की आती हुई
वक़्त तो कुछ लगेगा पर आख़िर ये कोहसार कट जाएगा
दर्द की इक नदी मेरे सीने से रास्ता बनाती हुई
एक गुल था कहीं पर अकेला उदासी में डूबा हुआ
एक तितली ख़यालों में आती हुई मुस्कुराती हुई
दिल समुंदर में डूबे हुए सारे लफ़्ज़ों की लाशें लिए
कश्तियों आंसुओं की चली आती हैं डगमगाती हुई
तितलियाँ मेरे कमरे में उड़ती हुई झरना बहाता हुआ
इक परी-ज़ाद अपने वतन की कहानी सुनाती होई
एक तस्वीर आँखों में आती हुई एक जाती हुई
ReplyDeleteफिर वही शाम है फिर वही याद है दिल दुखाती हुई
शब के दरिया में उठती है इक मौज-ए-माज़ी बला-ख़ेज़ क्यूँ
लौट जाती है क्यूँ साहिल-हाल से सब मिटाती हुई
और क्या होने वाला है अब जो अभी तक नहीं हो सका
सुन रहा हूँ कहीं दूर से फिर सदा कुन की आती हुई
वक़्त तो कुछ लगेगा पर आख़िर ये कोहसार कट जाएगा
दर्द की इक नदी मेरे सीने से रास्ता बनाती हुई
एक गुल था कहीं पर अकेला उदासी में डूबा हुआ
एक तितली ख़यालों में आती हुई मुस्कुराती हुई
दिल समुंदर में डूबे हुए सारे लफ़्ज़ों की लाशें लिए
कश्तियों आंसुओं की चली आती हैं डगमगाती हुई
तितलियाँ मेरे कमरे में उड़ती हुई झरना बहाता हुआ
इक परी-ज़ाद अपने वतन की कहानी सुनाती होई
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