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Yes its sinking in.. Rank 40, CSE 2015.The UPSC circle- the close and the beginning.

Bagh-e-Bahisht Se Mujhe Hukam-e-Safar Diya Tha Kyun Kaar-e-Jahan Daraz Hai, Ab Mera Intezar Kar                      - Mohammad...

Saturday, May 29, 2010

तू...


Wrote this sum tym back...
Jus wanna blog it 2day....

तू ही तो है ; बस एक तू, मेरे हर कण में तेरा नाम है।
मेरी रूह में बस्ता है तू; कृष्णा है तू; तू राम है।

मंदिर में तू, मस्जिद में तू; गिरिजा है, तू गुरुद्वार है।
जन- जन को मन से जोड़ दे; तू वह आलोकिक प्यार है.

कबीरा कि उज्जवल वाणी तू, मीरा का निश्छल प्रेम है।
सिन्धु भी उसे डूबा सके; जिस पत्थर पे तेरा नाम है।

नभ में, नदी में, बाग़ में; मैंने ढूंडा तुझे हर वन में है।
पर इक क्षण जो खुद में लीं हो; पाया तू मेरे मन में है

आधार दे इस सृष्टी को जो, मेरी छुपी वह शक्ति है.
जो ज्वार बन टकराए तट से; तू मेरी वेह अभिव्यक्ति है

पवन से करता है शीतल, मिटटी के मेरे शरीर को।
तू ताप देता है मुझे; कि पिघला सके मेरी पीर को।

तू है, तू व्योम है; तत्सत कि तू इकाई है।
ब्रहमांड़ का विस्तार है तू; तू प्रेम है, तू साईं है

तेरी हर रज़ा स्वीकार है; तेरा फैसला स्वीकार है
तुने लिख दिया स्वीकार है; बिन प्रश्न अब स्वीकार है

तू चाहे अब मुझे थाम ले; चाहे अधुरा छोड़ दे।
बिखरे सिरे मेरे बाँध दे; चाहे तो तू मुझे तोड़ दे।

मिटटी हूँ मैं, मै धुल हूँ; विस्तृत तू आकाश है।
कहतें हैं मुझसे दूर है; मुझमे है तू, मेरे पास है।

मिटटी के मेरे शरीर में, मेरे दर्द में, मेरी पीड़ में
मेरी आत्मा, मेरी ज्योत में; अस्तित्व के मेरे स्त्रोत में
मेरी हर उखड्ती सांस में; मेरे टूटते विश्वास में...
तू ही तो है, बस एक तू; मेरे हर कण में तेरा नाम है;
मेरी रूह में बस्ता है तू; कृष्णा है तू, तू राम है...

Wednesday, May 26, 2010

The Law of sacrifice.


You Sacrificed your 'Self' for Her to be happy; and turned out to be her happiness.

She is happy. Thanks to You.

You suffer still...

And You still call yourself 'Selfish'?


There's a difference between bieng in a relationship;

and bieng in Love.

She chose the former. God Bless Her.

You chose to be in Love. God Bless You more.

For You were not selfish...

:)


Monday, May 24, 2010

Sunshine


I still cherish the day.

When I would love to see you smile at me...

Your smile was the sunshine.
Limpid, warm and pure.

It would light all the queries of my soul...
And Soon I was made to realise;

Is not Sunshine for all??

Sunday, May 16, 2010

The New Dawn...

Each day, at dusk.
A strange name wakes up memories.
That deep voice stirs up the senses.
That enchanting glance darts through my bieng.
That touch unconquerable preys apon life.
And a gloom immortal engulfs the loneliness of my soul...
Each day, at dusk.
That name, that glance, that voice...
That touch, false and profaned, still pious...
That everything...
Remembered, forgotten.
Cherished, execrated.
Admired, trusted, transduced, betrayed.
Set to life, left dead on my way...
That everything...
Cuts me to pieces.
Keeps me awake...
Only at dawn.
When the shallow waters foam on my bieng.
As though I were a reef.
Washing me away.
And a shaft of bright hot sun rays,
dart into my pellucid body.
I break into a dazzling sparkle.
As though by magic.
And a fire gleams like jewel in my brown eyes...
To welcome the new dawn.
My new Dawn...

Another Historical Day...


Last time I was there;
Wanting to do the impossible.
Wanting to hold 'Sand' in my hand.
I knew;
It shall trickle away...
And today, my palm is empty.
Only some marks remain.

But I'll be there today.
Once again.
To face the irony.
To ask myself once again.
If the sand was at fault, or Me...

Tuesday, May 11, 2010

वक़्त


बता दो कि अब वक़्त जम सा गया है
अब पीर जैसा, पहाड़ों पे मन के;
धवल हो गया है, बहता नहीं है...
नम है कि अब कुछ भी कहता नहीं है...

इसे रंग देदो; नए कुछ , कुछ खोये;
तपिश मांगता है, पिघल फिर ये रोये...
पिघलना ये चाहे...
चलना ये चाहे...
ये चाहे कि बंदिश हर इक दिल की तोड़े...
फिर इन धमनियों में उमंग बन ये दौड़े।