I used to think till now that home was never a place, but a time.
It only took a daily cycle of sending thousands of stranded migrant labourers back to their districts and states, that I realized,
Home was also a place.
मै अक्सर सोचा करती थी कि घर कोई जगह या चारदीवारी नहीं होती। वो तो एक समय होता है। लेकिन इन दिनों सुबह से शाम तक हज़ारों प्रवासी मजदूरों को उनके जिलों और प्रदेशों में भेजते हुए महसूस होता है, की शायद मैं गलत थी। घर एक जगह भी होता है। वो जगह जहां तक पहुंचने के लिए आप हर फासला तय कर सकते हो।
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ReplyDeleteमज़दूर के अन्दर
ReplyDeleteएक भारत सांस लेता है
अब अगर अधिक दिनों तक
मज़दूर की यही हालत रही
तो भारत भूख से मर जाएगा
When the anchors come unhinged, all ships sail to there own shores. Some dock, some don't. Thank you for writing about this topic. It is a really difficult time. Stay safe.
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