वो खत बारिशों-से बरसते तो होंगे...
हाँ, अलग मंज़िलें हैं; हाँ, फासले हैं
मगर मेरे जैसे, तेरे रस्ते तो होंगे...
क्या तू आज भी, साहिलों की खोज में, फिर बेचैन हुआ है?
क्या फिर तेरे अंदर, बिन आवाज़ आहट के कुछ टूटा है?
मै झंझोरती, तू अगर पास होता...
मै फिर जोड़ती गर, तू विश्वास होता।
मगर छू नहीं सकती, तू है हवा-सा, तू रुकता कहाँ है?
तू एहसास है पर, बस एहसास
और एहसास रब-सा, झुकता कहाँ है ?
तू तो उजालों-सा बिखरा हुआ है मेरे शहर में
नहीं बस मगर है,मेरे साथ हमदम,तू मेरे घर में
जो होता यहाँ तू, तो घर मेरा मंदिर-सा मस्जिद-सा सजता
मगर घर का क्या है
तू अंदर बसा है
मैं इन रास्तों में
तुझे ढूंढ लूंगा
झंझोर दूंगा
तुझे जोड़ दूंगा।
मै गहराइयों में
मै ऊचाइयों में
मै नींदों में अपनी
पुकारूँगा जब जब
तू आएगा तब तब ,
नमी -सा, हँसी -सा
फिर आँखें मूँद लूंगा।
photograph borrowed from https://www.pinterest.com/pin/202873158191047564/
तू एहसास है पर, बस एहसास
ReplyDeleteऔर एहसास रब-सा, झुकता कहाँ है ? ... Wow! My favorite lines from this poem.