रास्तों में कहीं रौशनी मिल गयी
मंज़िलों तक मेरे साथ चलना मगर।
रौशनी ने कहा , भोर नज़दीक है ;
मैंने उससे कहा और सब ठीक है;
ढूंढ ला तू कहीं से वो जुगनू मेरा …
जो जानता था मेरे साथ जगना मगर।
जुगनुओं को बुझते जलते देखना
वायदों को पिघलते हुए देखना।
और मुझे धुप छाओं के इस खेल में ;
गिरते उठते संभलते हुए देखना।
हाँ सवेरे से जब रात हो जायेगी,
इस ज़मीं की हर इक चीज़ सो जाएगी,
देर तक जागते मेरे दो नैन में;
एक अधूरा सा बन ख्वाब जलना मगर।
रास्तों में कहीं रौशनी मिल गयी
मंज़िलों तक मेरे साथ चलना मगर।
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