कि चल आज ले चल मुझे इस शहर से परे ,
कुछ पहाड़ों में डूबूं ...
की चल दूर हर एक डगर से,कहीं जा
समन्दरों पर चढ़ूँ फिर...
खुली फिर हवा में
मुझे साथ तेरे
गगन को चुराना...
मै सोया नहीं हूँ बहुत दिन से थक कर
मै रोया नहीं हूँ,बहुत दिन से मै घर
गया भी नहीं हूँ
मै पिघला नहीं हूँ बहुत दिन से मुझमे
जमा तू हुआ है..
मै ऐसा करूँ क्या,जो खो जाऊं इस ख़ूबसूरत जहाँ में
जो मिल जाऊ खुद को किसी आसमां में
मै ऐसा करूँ क्या? मै क्या जीत जाऊं?
जो हर शख्स अपना-सा लगने लगे फिर...
ये जग रक्स करता-सा लगने लगे फिर...
photograph credits: Mayank Mediratta
bahut sudar rachna:) desires of an innocent heart
ReplyDeletethanks Vandana. keep talking:)
Deletefir se hindi...ahaa
ReplyDeletewhat to do:)... sometimes my mind talks to me in hindi, the other times in english... so long as it talks.. I am here to stay:)
Deletebeautifully written!
ReplyDeleteThanks dear. :)
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