नींदों को जगा देना ऐसे
मुझे मुझसे मिला देना ऐसे
मै रागों सा गूंजू ,मै लम्हे सा ठहरूँ,
मै रंगों सा बिखरुं, मै पानी सा बह लूँ..
नींदों को जगा देना ऐसे
मुझे मुझसे मिला देना ऐसे
मै ना बोलूँ मेरा अक्स कहे
मै ठहरूँ जब, जग रक्स करे
बंदिश न हो, ख्वाहिश न हो
बूँदें हों पर बारिश न हो ..
आवाज़ न हो , संगीत मगर
कानों में सुनाई दे जाए
तू न हो मेरे घर में मगर,
दर्पण में दिखाई दे जाए
तू और कहीं भी रहता हो
मुझमें तू मगर, मेरे अंदर है
माथे पे मेरे सूरज की तरह
तू रोज़ सवेरे उगता है
पलकों में मेरी, तू आज भी सुन
सपनों की तरह जी उठता है.
कब फिर तुझसे मिल पाउँगा
ये सोच नहीं मै पाता हूँ
पर अब मुझसे, जब मिलता हूँ
मै तुझसे भी मिल जाता हूँ
मै तुझसे भी मिल जाता हूँ।
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shaandaar.. ek dum shaandaar...
ReplyDeleteaur kya likhta tareef mein teri..
kuch shabd the bus..
unme se kuch kahe gaye..
kuch nhin...
dil mein najaane aarzoo thhi kitni..
ki azaad rahunga mein har waqt...
lamhe ther se jaayenge tab..
na raat ki aahat hogi...
aur na din ka rahega intezaar..
par aisaa hua nhin..
ab tarasta hai dil aur kehta hai ki..
kaash mein tujhse mil jaata..
kaash mein tujhse mil jaata...
ha ha :D
Absolutely loved this! It's got this sufi/vedantic wisdom and the rhythm made it a delight to read.. :)
ReplyDeleteThank you. Yes, it has that sufi touch... keep interacting:)
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