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Friday, September 4, 2015

Roshni- 3: Let me change like this city


क्या ये एहसास है? जो बदलता नहीं 

सब बदल जाएगा,ये रहेगा वही?

मै मगर आज,हाँ,इस शहर की तरह

क्या पता,चाहता हूँ बदलना मगर...


तू मुझे फिर बदलते हुए देखना 

हर सुबह नभ-सा जलते हुए देखना 

और मुझे धूप-छाओं के इस खेल में ;

गिरते उठते संभलते हुए देखना


हाँ सवेरे से जब रात हो जायेगी,

इस ज़मीं की हर इक चीज़ सो जाएगी,

देर तक जागते मेरे दो नैन में;  

एक अधूरा-सा बन ख्वाब जलना मगर।


रास्तों में कहीं रौशनी मिल गयी

मंज़िलों तक मेरे साथ चलना मगर। 


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