कुछ सीली हुई कहानियाँ
कुछ सीली हुई कहानियाँ
जो बरसती हुई खामोशी तुम्हारी
सवालों की गीली मिटटी को
चाक पर चढ़ा कर लिख रही है
जल रहीं हैं,
तुम्हारी पलकों की आंच पर
रोज़ पढता हूँ।
धूप में तुम्हारी
ये सख्त हो न जाएँ
मै डरता हूँ।
मै डरता हूँ
ये तुममें खो न जाएँ।
मै डरता हूँ
तुम इन-से (इन जैसे ) हो न जाओ
सख्त।
photograph borrowed from https://in.pinterest.com/pin/344666177712969428/
:) beautiful
ReplyDeleteThank you Vandana.
Delete:)
Wow! WOW! I kept reading it over and over again! It's so perfect and beautiful!
ReplyDeleteIspe tippani nahi sirf applause banta hai :D
From someone whose thoughts n words have often stirred me, this is such a compliment!
DeleteThanks a ton:)
ps. tippani bhi de sakte ho:)
Nice
ReplyDeletethank you.
DeleteNice
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