हाँ, इन पहाड़ों की
बर्फीली सुरंगों मेंं
सर्दियों की,
धुंद- सा
आसमां
बनके।
तुम छू रहे हो क्यों
मेरे सवालों को,
शाख- सा
आसरा
बनके।
तुम धूप हो जगमग
या कांगड़ी की तुम
आंच हो...
पिघले हुए हो या,
मुझमें बर्फ की तरह जमा
कांच हो...
फिर इस सुबह मुझको
तुम मिल गए हो,
मेरी हथेली के
बिखरे हुए रंगों पर,
ओस की
बूँद-सा
हौंसला
बनके ।
बर्फीली सुरंगों मेंं
सर्दियों की,
धुंद- सा
आसमां
बनके।
तुम छू रहे हो क्यों
मेरे सवालों को,
शाख- सा
आसरा
बनके।
तुम धूप हो जगमग
या कांगड़ी की तुम
आंच हो...
पिघले हुए हो या,
मुझमें बर्फ की तरह जमा
कांच हो...
फिर इस सुबह मुझको
तुम मिल गए हो,
मेरी हथेली के
बिखरे हुए रंगों पर,
ओस की
बूँद-सा
हौंसला
बनके ।
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