उन दिनों हर लम्हा था,
एहसास तम का दिलाता...
मेरा खुद पर से यकींन,
कैसे नहीं डगमगाता?
जब रास्ता हर सुना था
फिर भी मंजिल की आस रखी.
जब हर पल दिल को चुभता था,
ये खुदाई तेरे दिल के पास रखी.
मैं भी देखूंगा ऐ खुदा कब तक
तू मेरा इम्तेहां लेता है...
मेरी आँखों की खोयी नींदों को,
किस दिन मुझे वापस देता है
वो छोड़ा हुआ तट अब ना दुबारा मिलेगा..
क्या मुझको मेरा किनारा मिलेगा..
चलते चलते...
तेरा फ़रिश्ता-सा कोई पल,
हर दिन मुझसे टकराता है.
आँखों के आंसू को धोकर,
ये आग भर जाता है
जब तक फिर राही जीता है,
ये आग भी जलती रहती है
ये उसको रोशन करती है
हर पल ये उससे कहती है-
'बस एक कदम... फिर उजाला मिलेगा'
यकीं है मुझे भी किनारा मिलेगा
एक दिन मेरा किनारा मिलेगा
someone I am
is waiting for courage
the one I want
the one I will become will catch me
so let me fall
I don't need your warnings
I won't hear them.
let me fall.
let me climb.
there's one moment
when fear and dreams must collide.
this perfect moment.
Liked it. :-)
ReplyDeleteअरे वाह !!! तो आप हिंदी में भी लिखती हैं...लेकिन इतने दिनों से थी कहाँ ???
ReplyDeleteसागर को कहा किनारे की आस होती है
ReplyDeleteइंसान को ही सागर के तट की तलाश होती है
मैं मीन हूँ उस नील सागर की,
जिस सागर की लहर में ग़ज़ल की आवाज़ होती है...
bahut dino baad likha kuch.
ReplyDeleteWo subah, kabhi to aayegi :)
Cheers,
Blasphemous Aesthete
Welcome back Gazal.. Achha likha hai..
ReplyDeletekeep writing.. it helps.. my 300th post is up .. do have a look.. thanks..
Nice one!!!
ReplyDelete