सूरज ये ढलता है,
हाँ, उस समय मेरा,
मन क्यों मचलता है...?
खग सारे अपने,
घर लौटते हैं जब,
घर लौटते हैं जब,
पग मेरा घर से,
बाहर क्यों निकलता है...?
समंदर की लहरें,
जब शांत होती हैं,
जब शांत होती हैं,
मन का ये सागर,
यूँ हलचल क्यों करता है...?
जब जब मेरी ये,
उम्मीद टूटे है,
क्यों आश का एक,
दिया दिल में जलता है॥?
जब दिल सभी पर,
यकीन करने लगता है,
तब क्यूँ मुझे कोई,
अपना सा छलता है..?
जब जब मेरा ख़ुद पे,
अपना सा छलता है..?
जब जब मेरा ख़ुद पे,
विशवास टूटा है,
क्यूँ तेरे वास्ते दिल में,
क्यूँ तेरे वास्ते दिल में,
विशवास पलता है॥?
क्यूँ तेरे वास्ते दिल में,
विशवास पलता है...?
जब शाम होती है,
सूरज ये ढलता है,
हाँ, उस समय मेरा,
हाँ, उस समय मेरा,
मन क्यूँ मचलता है..?