की सुबहों और शामों
को ढकते अंधेरों
से बहते उजालों
से हर रोज़, पल- पल
रिसते सवालों
में चुपचाप बैठी....
मेरी ज़िन्दगी है।
है बनती- बिगड़ती
उजड़ती- सँवरती
तपती - सुलग़ती
जमती - ठिठुरती
थिरकती - मचलती
सिहरती - उफ़नती
सौ रंग बुनती ,
तेरे हर्फ़ सुनती
मीलों को गिनती
लम्हों को सालों
सालों मिसालों
को धागों में बिनती
तेरे राग जैसी ,
तेरी आग जैसी ,
...मेरी ज़िन्दगी है।
मेरी सुबह-शामों में
ReplyDeleteदिल के सवालों में
सेह्मी हुई सी
कहीं ये रुकी सी
दिल्लगी में फंसी सी
तेरे ही ख़यालो में
डूबी हुई ये
मेरी ज़िन्दगी है।
तेरे रंगो में ही
तेरे संग में ही
थिरकती मचलती
तुझी से शुरू ये
तुझी में ख़तम है
मेरी आग मुझमें
तेरे ही लिए है।
लम्हों को सालों
सालों मिसालों
को धागों में बिनती
तेरी ज़िन्दगी ही
मेरी ज़िन्दगी है।
-VS
पल- पल
ReplyDeleteरिसते सवालों
में चुपचाप बैठी....
मेरी ज़िन्दगी है।
…..बहुत खूब "गजल" जी बहुत खूब...