रास्तों में कहीं रौशनी मिल गयी
मंज़िलों तक मेरे साथ चलना मगर।
मौसमों को बदलते हुए देखना,
भोर को सांझ में ढलते देखना,
और मुझे आसमां और ज़मी के दरमियां
सूखे पत्तों पे चलते हुए देखना।
हाँ सवेरे से जब रात हो जायेगी,
इस ज़मीं की हर इक चीज़ सो जाएगी,
देर तक जागते मेरे दो नैन में;
एक आधा-सा बन ख्वाब जलना मगर।
रास्तों में कहीं रौशनी मिल गयी
मंज़िलों तक मेरे साथ चलना मगर।
रौशनी ने कहा , भोर नज़दीक है ;
मैंने उससे कहा और सब ठीक है;
ढूंढ ला तू फिर-से आज वो जुगनू मेरा …
जो जानता है, मेरे साथ जगना मगर।
जुगनुओं को बुझते -जलते देखना
वायदों को पिघलते हुए देखना।
और मुझे धुप छाओं के इस खेल में ;
गिरते उठते संभलते हुए देखना।
हाँ सवेरे से जब रात हो जायेगी,
इस ज़मीं की हर इक चीज़ सो जाएगी,
देर तक जागते मेरे दो नैन में;
एक अधूरा सा बन ख्वाब जलना मगर।
रास्तों में कहीं रौशनी मिल गयी
मंज़िलों तक मेरे साथ चलना मगर।
M'am someone has using ur fake fb id with same name.Pls check it
ReplyDeleteBahut khub sundar...
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