मै ये कहाँ आ गया
किसको कहूँ , न कहूँ ?
मैं हूँ अभी भी वहाँ
बैठा हुआ, हूबहू
मै हँसता हूँ ,
रो पड़ता हूँ
हूँ भूला ,
याद भी करता हूँ
- मै स्याही हूँ -
अपने रंगों से
रोज़ मैं रोज़ झगड़ता हूँ
मै बादल -सा घिर जाता हूँ
मै पागल - सा फिर आता हूँ
इन शहरों में
इन कसबों में
हर गाँव की
पगडंडी में
- जंगल जंगल -
किसको ढूंढूं ?
मैं रातों में ,
बीच अँधेरे और सवेरे के
आँखें खोलूँ ,आँखें मूंदूँ,,,
- ढूंढूं तेरी -
धड़कन की धुन
के बीच तेरी
- कंपन कंपन -
और फिर छुपकर
पलकों के तले
रिसती - रिसती
उलझन - उलझन।
पर बीच कहीं उसके मैंने
तेरी आँखों में
जो परियाँ नाचती देखी थी,
उन परियों के
घरौंदों में
जलता है कहीं
एक काँच का पल
जग चूड़ी कंगन पहनेगा
जलते उस काँच के रंगों का
मैं कानों के इन बूंदों में
पहनूँ रोज़ तुझे क्यों लम्हों सा ...
क्यों मै सोलह श्रृंगार करूँ ?
संगीत तेरा क्यों रोज़ सुनूँ ?
तोड़ूँ सब या तेरे ख़्वाब बुनूँ
हर रोज़ फिरूं
पागल पागल
बेचैन -बेचैन
बिस्मिल - बिस्मिल
बेकल - बेकल
किससे पूछूँ ?
तू मेरा कौन है?
मै तेरा कौन हूँ?
कौन अरमान है?
कौन अनजान है ?
दे बता अब ख़ुदा
अब तो ख़ुदा , दे बता ...