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Bagh-e-Bahisht Se Mujhe Hukam-e-Safar Diya Tha Kyun Kaar-e-Jahan Daraz Hai, Ab Mera Intezar Kar                      - Mohammad...

Saturday, February 27, 2021

The filament sings a story.


 Some nights will be cold and dark, and you will have to light up all the corners of your room to bring yourself light. 

Do that. 

Small efforts matter. 

And remember it's important to have known your darkness, to be able to reach your light. .


Of Alphabet and song.


 All I need is a piece of paper in spring

and a little graphite or some charcoal. 

There are these sonnets dancing on my fingers.

and ballads bubble from my Kohl.

Sunday, February 21, 2021

Attempts at poetry recital

 

This is one of my favorite poems by Harivansh Rai Bachchan Sahab.
https://youtu.be/rQw2E0x6c_4

अंग से मेरे लगा तू अंग ऐसे, आज तू ही बोल मेरे भी गले से।

पाप हो या पुण्‍य हो, मैंने किया है
आज तक कुछ भी नहींआधे हृदय से,
औ' न आधी हार से मानी पराजय
औ' न की तसकीन ही आधी विजय से;
आज मैं संपूर्ण अपने को उठाकर
अवतरित ध्‍वनि-शब्‍द में करने चला हूँ,
अंग से मेरे लगा तू अंग ऐसे, आज तू ही बोल मेरे भी गले से।

और है क्‍या खास मुझमें जो कि अपने
आपको साकार करना चाहता हूँ,
ख़ास यह है, सब तरह की ख़ासियत से
आज मैं इन्‍कार करना चाहता हूँ;
हूँ न सोना, हूँ न चाँदी, हूँ न मूँगा,
हूँ न माणिक, हूँ न मोती, हूँ न हीरा,
किंतु मैं आह्वान करने जा रहा हूँ देवता का एक मिट्टी के डले से।
अंग से मेरे लगा तू अंग ऐसे, आज तू ही बोल मेरे भी गले से।

और मेरे देवता भी वे नहीं हैं
जो कि ऊँचे स्‍वर्ग में हैं वास करते,
और जो अपने महत्‍ता छोड़,
सत्‍ता में किसी का भी नहीं विश्‍वास करते;
देवता मेरे वही हैं जो कि जीवन
में पड़े संघर्ष करते, गीत गाते,
मुसकराते और जो छाती बढ़ाते एक होने के लिए हर दिलजले से।
अंग से मेरे लगा तू अंग ऐसे, आज तू ही बोल मेरे भी गले से।

छप चुके मेरी किताबें पूरबी औ'
पच्छिमी-दोनों तरह के अक्षरों में,
औ' सुने भी जा चुके हैं भाव मेरे
देश औ' परदेश-दोनों के स्‍वरों में,
पर खुशी से नाचने का पाँव मेरे
उस समय तक हैं नहीं तैयार जबतक,
गीत अपना मैं नहीं सुनता किसी गंगोजमन के तीर फिरते बावलों से।

अंग से मेरे लगा तू अंग ऐसे, आज तू ही बोल मेरे भी गले से।
- Harivansh Rai Bachchan Sahab

Monday, February 8, 2021

I got you.


Long back in my life I used to think that strength is about fighting, about holding the storm inside you, about not letting anyone know . 

It's been a long journey and there are days I realise, strength is also about opening up, about accepting that you are scared, about surrendering to pain, looking it in its eye and telling it- "I got you". I got you.

Strength is what you make of yourself. And sometimes it is  just letting yourself be.