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Sunday, July 25, 2021

These verses I write


 तुम पूछते हो

कविता कैसे लिख लेती हो?


कविता

एक चीख है

गले में अटके अल्फ़ाज़ों की चीख

अपना घर ढूंढते, खोये हुए बच्चे-से अल्फ़ाज़

जिसका सबसे प्यारा खिलौना,

तोड़ दिया हो किसी ने हँसकर।


कविता 

एक रक़्स है

कभी सूफ़ी-सा ज़िक्र

कभी खयालों में सैक्सोफोन पर किया

तुम्हारे साथ एक वॉल्ट्ज

मेरे तुम्हारे ख़ालिस खयालों का रक़्स

कागज़ पर।


कविता बग़ावत है

अकेलेपन से 

बात न करने की 

ज़िद ही से।


कविता इश्क़ है

जीने के फ़ैसले से,

ज़िन्दगी से।


कभी छूकर नहीं देखा तुमने

मेरे रेज़े रेज़े में थिरकती हुई

ज़िन्दगी से प्रेम करने की

आदत को।


वरना जान पाते

कैसे लिखती हूँ मैं


ख़ामोशी को ओढ़े

अपने हर दर्द को जोड़े


टीस को ढोये

प्रेम को संजोए


दायरों को तोड़ती हुई

तुम्हें मुझसे जोड़ती हुई


कविता।

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